गरुड़ पुराण : इन संकेतों को पहचान कर अंदाजा लगाया जा सकता है कि मृत्यु करीब है
- bharat 24
- May 22, 2021
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गरुड़ पुराण को महापुराण माना गया है. ये सनातन धर्म के 18 महापुराणों में से एक है. गरुड़ पुराण में भगवान नारायण और उनके वाहन गरुड़ की बातचीत के जरिए लोगों को भगवान की भक्ति का मार्ग दिखाया गया है. गरुड़ पुराण को मृत्यु के बाद सद्गति प्रदान करने वाला माना जाता है, इसलिए हिंदू धर्म में ज्यादातर इसे किसी की मृत्यु के बाद सुना जाता है. गरुड़ पुराण में लोगों को भक्ति, वैराग्य, यज्ञ, तप, दान, सदाचार के अलावा मृत्यु आने से पहले के संकेतों और मृत्यु के बाद की स्थितियों के बारे में भी बताया गया है. यहां जानिए उन संकेतों के बारे में जो व्यक्ति को इस बात का अंदाजा दिला सकते हैं कि अब उसकी मृत्यु करीब है.
1- सामान्य तौर पर व्यक्ति जब अपने कान पर हाथ रखते हैं तो उन्हें कुछ आवाजें सुनाई देती हैं, लेकिन जब मृत्यु का समय निकट आ रहा होता है तो कान पर हाथ रखने पर किसी भी तरह की आवाजें सुनाई देना बंद हो जाता है.
2- कहा जाता है कि यदि वक्त के साथ व्यक्ति को अपनी नाक की नोक दिखना बंद हो जाए, या उसकी आंखें ऊपर की ओर मुड़ने लगें तो समझिए मृत्यु का समय जल्द ही आने वाला है. आमतौर पर मृत्यु के समय आंखें पूरी तरह उपर की ओर मुड़ जाती हैं
3- जब इस जीवन का अंत नजदीक होता है तो लोगों को कई बार अपने पूर्वजों के साथ रहने का अहसास होता है. वहीं कुछ लोगों की परछाईं साथ छोड़ने लगती है.
4- कई बार चंद्रमा गोल होने के बावजूद खंडित दिखाई देता है. उसके अलग आकार दिख सकते हैं, जैसे चंद्रमा दो हिस्सों में दिखाई दे सकता है. चंद्रमा अपने ही आकार में होता है और ये सब उस व्यक्ति का भ्रम होता है.
5- मौत का समय जब नजदीक होता है तो व्यक्ति को अक्सर ये अहसास होता है कि उसके आसपास कोई बैठा है, जिसे वो पहचानता नहीं है.
कई बार उसके शरीर से अजीब सी गंध आने लगती है, जिसे वो स्वयं ही महसूस कर पाता है. इस गंध को मृत्यु गंध कहा जाता है.
6- कभी-कभी कुछ लोगों को शीशे में चेहरा देखने पर खुद का चेहरा नहीं दिखता, बल्कि किसी दूसरे का दिखता है. कहा जाता है कि ऐसा अगर हो, तो समझिए कि 24 घंटे के अंदर मृत्यु होनी तय है.
7- कुछ लोगों के नाक के स्वर अजीब की ध्वनि देते हैं. कहा जाता है कि ये लक्षण मृत्यु से दो या तीन दिन पहले दिखाई देते हैं.
(यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं, इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है. )
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