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गोरखपुर की नदियों में प्रदूषण पर एनजीटी नाराज, सरकार को सख्‍त निर्देश



राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एनजीटी) ने गंगा की सहायक नदियों में बिना शोधन सीवेज गिरने पर खासी नाराजगी जताई है। प्रदूषण रोकने में संबंधित विभागों को विफल और रवैये को को गैर जिम्मेदाराना मानते हुए प्राधिकरण ने टिप्पणी की है कि यह विधि के शासन के विरुद्ध है और ऐसे अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की जाए। एनजीटी ने मुख्य सचिव और उ'च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली कमेटी को इस संंबंध में तीन महीने में रिपोर्ट फाइल करने के लिए निर्देशित किया है।


गोरखपुर की मीरा शुक्‍ला की याचिका पर हुई सुनवाई


गोरखपुर की मीरा शुक्ला की याचिका पर सुनवाई करते हुए पीठ के अध्यक्ष और एनजीटी के चेयरमैन न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोयल ने कहा कि सरकार 'प्रदूषण के अपराध को कैसे रोकेगी, इसकी कोई योजना नहीं दिख रही है।

संबंधित संस्थाएं प्रदूषण रोकने के मामले में लापरवाही भरा रवैया अपना रही हैैं। यह स्थिति असंतोषजनक है। यह बताया जा रहा कि सीईटीपी का निर्माण हो रहा है। एक एसटीपी का निर्माण प्रस्तावित है लेकिन कब तक, इसकी कोई समय सीमा नहीं है। इसका मतलब है कि अपराध जारी है।


अधिकारी अपने कर्त्‍तव्‍यों की कर रहे अनदेखी


एक समिति की रिपोर्ट के हवाले से पीठ ने कहा कि प्रदूषित जल के उत्प्रïवाह के संबंध में संबंधित अधिकारी बड़े पैमाने पर कर्तव्यों की अनदेखी कर रहे हैैं। अब समय आ गया है कि औद्योगिक एवं सीवेज उत्प्रवाह को नदियों में गिरने से रोकने, ठोस अपशिष्ट प्रबंधन और अविरल गंगा के लिए सुप्रीम कोर्ट के दिशा निर्देशों का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए मुख्य सचिव व्यक्तिगत तौर पर निगरानी करें। रामगढ़ ताल के साथ आमी, राप्ती, रोहिन समेत गोरखपुर के आसपास की अन्य नदियों का प्रदूषण दूर करने के लिए आवश्यक कदम उठाएं। इनके कायाकल्प के लिए बनी योजनाओं की देखरेख के लिए अधिकारियों की जिम्मेदारी तय करें। आवश्यक बजट और निर्धारित समयसीमा में अनुपालन भी सुनिश्चित कराएं। पीठ ने यह भी कहा कि जब स्पष्ट है कि गंगा या किसी अन्य जल स्रोत को प्रदूषित करने पर आपराधिक मुकदमा दर्ज करने का प्रावधान है और अधिकारी भी इससे बरी नहीं है, इस प्रोजेक्ट के अनुपालन में नेशनल मिशन फार क्लीन गंगा के बजट के इंतजार का हवाला देकर देरी नहीं की जा सकती।


राप्‍ती में 18 नालों से गिर रहा दूषित जल


एनजीटी ने असंतोष जताया कि राप्ती नदी में गिरने वाले महज छह नाले-नालियां ही बंद हुए हैैं। 18 नालों से दूषित जल सीधे राप्ती नदी में गिर रहा है। यही राप्ती घाघरा में मिलती है जो आगे जाकर गंगा में शामिल हो जाती है। राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की वेबसाइट पर दिख रहा कि आमी को प्रदूषण मुक्त करने की कार्ययोजना 2019 में ही बन गई थी, यदि ऐसा है तो उसका अनुपालन तुरंत कराएं।


मीरा ने अपनी याचिका में दावा किया है कि गोरखपुर में एसटीपी नहीं है और नालियों के जरिए सीवेज सीधे जल निकायों या राप्ती नदी में बहा दिया जाता है। पानी के उ'च प्रदूषण के कारण 2014 में ही 500 से अधिक मौतें हुईं और बिना किसी प्रभावी उपाय और जल प्रदूषण पर नियंत्रण के एक बड़ी राशि खर्च कर दी गई।

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