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कुशीनगर: धर्मांतरण सहित कई आरोपों से घिरा शिरीन बसुमता नारी संस्थान, जानिए क्या है पूरा मामला


कुशीनगर जिले के पडरौना शहर के परसौनी कला में लगभग 20 वर्षों से संचालित शिरीन बसुमता नारी संस्थान आश्रम कई गंभीर आरोपों से घिर गया है। गुरुवार को जिले में आईं उत्तर प्रदेश राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग की सदस्य ने आश्रम के निरीक्षण के बाद अपनी रिपोर्ट में कई गंभीर कमियां गिनाई हैं। राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग की सदस्य डॉ. सुचिता चतुर्वेदी ने अनाथ आश्रम को बिना पंजीकरण के संचालित करने, अनाथ आश्रम के बच्चों का धर्मांतरण कराने, बिना जगह के 25 बच्चों को रखने सहित कई गंभीर आरोप लगाए हैं। अपनी रिपोर्ट उन्होंने डीएम सहित प्रमुख सचिव, महिला कल्याण एवं बाल विकास, उत्तर प्रदेश शासन और निदेशक महिला कल्याण विभाग, लखनऊ को भेजा है। इसके बाद डीएम ने एसडीएम सदर को मामले की जांच सौंपी है। आयोग की सदस्य ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि उन्होंने 15 जुलाई को शिरीन बसुमता नारी संस्थान पडरौना के अनाथ आश्रम का औचक निरीक्षण किया। यह संस्था किशोर एवं बालकों की देखरेख एवं संरक्षण अधिनियम 2015 तथा अधिनियम के आदर्श नियम 2016 कै प्रावधानों के खिलाफ काम कर रही है। इस अनाथ आश्रम में लगभग 25 बच्चे हैं, जो पांच वर्ष से लेकर 18 वर्ष की आयु तक के हैं। उन्हें बाल कल्याण समिति के समक्ष प्रस्तुत नहीं किया गया है, जो अधिनियम की धारा-32 का उल्लंघन है। सभी बच्चों के नाम बदले गए हैं। उनके नाम के आगे बसुमता जोड़ा गया है। यह संस्था की संस्थापक शिरीन का उपनाम है। रिपोर्ट में कहा गया है कि संस्था में लड़के और लड़कियां विभिन्न आयु वर्ग के हैं, लेकिन सभी एक साथ रह रहे हैं। यह आदर्श नियम 2016 के नियम 29(6) बी का उल्लंघन है। संस्था ने बच्चों से संबंधित कोई पत्रावली नहीं प्रस्तुत की। बच्चों से जुड़ा सिर्फ एक रजिस्टर बना है। इसके प्रत्येक पेज पर बच्चे का संक्षिप्त परिचय लिखा है। उसमें बच्चों की संपूर्ण जानकारी नहीं है। यह भी नियम विरुद्ध है। कोई स्टाफ नहीं है। संस्थापिका अपने परिवार के साथ रहती हैं। उनके दो लड़कों की शादी हो चुकी है, जो अपनी पत्नी और बच्चों के साथ उसी भवन में रहते हैं। इसके अलावा अन्य कई बिंदुओं पर भी उन्होंने आपत्ति जताई है। इसके बावजूद अभी तक संस्था के विरुद्घ कोई कार्रवाई नहीं हुई है। उन्होंने डीएम को लिखे पत्र में कहा है कि बच्चों को उनकी आयु के अनुसार उचित संस्थाओं में बाल कल्याण समिति के माध्यम से स्थानांतरित कराएं। साथ ही इससे संबंधित कार्रवाई से एक सप्ताह के अंदर अवगत भी कराएं। बच्चों को अपने पास रखने के लिए ली हाईकोर्ट की शरण जिलाधिकारी एस. राजलिंगम ने बताया कि आयोग की सदस्य का पत्र प्राप्त हुआ है। उनके निरीक्षण के दौरान आश्रम में मिली कमियों और शिकायतों की जांच के लिए एसडीएम सदर को निर्देश दिया गया है। जांच में यदि आरोप सही मिलते हैं तो नियमानुसार कार्रवाई की जाएगी। बिना आरोप साबित हुए किसी पर कार्रवाई नहीं की जा सकती। परसौनीकला अनाथ आश्रम के संचालक शिरीन बसुमता ने बताया कि अनाथ आश्रम का पंजीकरण वर्ष 2001 में कराया गया था। वर्ष 2015 में किशोर न्याय बोर्ड की तरफ से नए नियम लागू किए गए, जिसे पूरा कर पाना बड़ा मुश्किल था। इसलिए नवीनीकरण नहीं हो पाया। उसके बाद से नए बच्चों का प्रवेश बंद कर दिया गया। धर्मांतरण कराने का आरोप गलत है। मैं अनाथ और बेसहारा मिले बच्चों को पालन पोषण करती हूं। इस मामले में हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया गया है। उत्तर प्रदेश राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग के सदस्य डॉ. सुचिता चतुर्वेदी ने बताया कि अनाथ आश्रम का पंजीकरण नहीं है। आश्रम में मौजूद सभी बच्चों का धर्म परिवर्तन करा लिया गया है। 25 बच्चे हैं, जिनके नाम के साथ बसुमता जोड़ा गया है। बहुत कम जगह में सभी बच्चे रहते हैं। इस बारे में डीएम को पत्र भेजा गया है। इसके साथ ही महिला कल्याण एवं बाल विकास, उत्तर प्रदेश शासन और निदेशक महिला कल्याण विभाग, लखनऊ को पत्र भेजकर मामले से अवगत कराया गया है। पडरौना क्षेत्र के परसौनी कला स्थित शिरीन बसुमता नारी संस्थान की संचालक शिरीन बसुमता ने बताया कि 25 बच्चों को रखने के लिए उनके पास जगह की कमी है। इस पर बाल कल्याण समिति की तरफ से बच्चों को सरेंडर करने के लिए कहा गया था। जिन बच्चों को उन्होंने नन्ही उम्र से पाला है, उन्हें सरेंडर करने से मना कर दिया। उन्होंने इस मामले में अफसरों के दबाव को देखते हुए दो साल पहले हाईकोर्ट की शरण ली। मामला हाईकोर्ट में विचाराधीन है। इस बात की पुष्टि बाल कल्याण समिति की अध्यक्ष दीपाली सिन्हा ने भी की।

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