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इन्सानों के लिए जान की बाजी लगाते ये बंदर



इसी प्रजाति के बंदर ट्यूलान केंद्र की ब्रीडिंग कॉलनी में सबसे ज्यादा हैं. पिछले एक साल में दो सौ से ज्यादा वयस्क बंदरों को कोरोनावायरस से संबंधित प्रयोगों में इस्तेमाल किया जा चुका है. केंद्र में हो रहे कोविड-19 से संबंधित अध्ययनों में से एक बीती फरवरी में विज्ञान पत्रिका नेशनल अकैडमी ऑफ साइसेंज में प्रकाशित हुआ था. इस शोध में पता चला कि भारी शरीरों वाले ज्यादा आयु के मरीज सांस लेते ज्यादा वाष्पकण छोड़ते हैं, जो उन्होंने सुपरस्प्रैडर बनाता है.


अध्ययन में शामिल रहे केंद्र के संक्रामक रोग विभाग के निदेशक चैड रॉय कहते हैं कि इस अध्ययन में बंदरों का योगदान बेहद अहम था. आने वाले समय में लंबी अवधि के कोविड पर अध्ययन को योजना पर भी काम चल रहा है, जो कुछ मरीजों में देखा गया है. लगभग दस फीसदी मरीज लंबे समय तक कोविड से बीमार रहे हैं अध्ययन पूरा हो जाने के बाद ट्यूलान सेंटर में, शोध में शामिल रहे बंदरों को मार दिया जाता है और उनके ऊतकों को जमा कर लिया जाता है, जिससे श्वसन तंत्र के इतर हो रहे कोविड-19 के असर का अध्ययन किया जा सके. इस वजह से कुछ लोग नाखुश भी हैं. जानवरों के अधिकारों के लिए काम करने वाली संस्था पीपल फॉर द एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनिमल्स (PETA) की कैथी गिलेर्मो कहती हैं कि बंदरों पर प्रयोग नहीं होने चाहिए. वह कहती हैं, "अगर उनका इस्तेमाल ना किया होता, तो उन्हें मारना भी ना पड़ता. हमें अगर कुछ काम की बात पता चलेगी तो इन्सानों पर प्रयोग से ही पता चलेगी." वीके/आईबी (रॉयटर्स)

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