पाकिस्तानी की खुफिया एजेंसी आईएसआई ने अपने लड़ाकों और तालिबान को युद्धग्रस्त अफगानिस्तान में पिछले 20 वर्षों के दौरान भारत द्वारा निर्मित इमारतों और बुनियादी ढांचे को निशाना बनाने का निर्देश दिया है।आईएसआई ने स्पष्ट रूप से निर्देश दिए हैं कि सबसे पहले तालिबान के नियंत्रण में आने वाले क्षेत्रों में भारतीय संपत्ति को लक्ष्य बनाया जाना चाहिए। इंडिया टुडे के मुताबिक, एक सरकारी सूत्र ने बताया कि, 'बड़ी संख्या में पाकिस्तानी लड़ाके अफगानिस्तान के अंदर सरकार के खिलाफ और तालिबान का समर्थन करने के खिलाफ लड़ाई में शामिल हुए हैं। उन्होंने भारतीय संपत्तियों और इमारतों को निशाना बनाने के निर्देश के साथ इलाके में प्रवेश किया है।' 10 हजार पाकिस्तानी लड़ाके बताया जा रहा है कि 10 हजार से ज्यादा पाकिस्तानी लड़ाके अफगानिस्तान की सीमा में प्रवेश कर चुके हैं। वहीं कई काफी वर्षों से वहां तैनात थे और सक्रिय रूप से अमेरिका और अन्य सुरक्षा बलों के खिलाफ लड़ रहे थे। 3 अरब डॉलर से अधिक खर्च किए 2001 में काबुल से तालिबान को उखाड़ फेंकने के बाद से भारत ने अफगानिस्तान में 3 अरब डॉलर से अधिक खर्च किए हैं। भारतीय संपत्ति के प्रमुख प्रतीकों में डेलाराम और जरंज के मध्य 218 किमी लंबी सड़क, भारत अफगानिस्तान मैत्री बांध (जिसे सलमा बांध भी कहा जाता है) और अफगानिस्तान का संसद भवन है, जिसका उद्घाटन 2015 में किया गया था। भारत की स्थिति स्पष्ट नहीं इस बीच, तालिबान की वापसी के साथ क्या भारत अफगानिस्तान में अपनी उपस्थिति बनाए रख पाएगा या नहीं यह अभी तक स्पष्ट नहीं हो सका है। निर्माण कार्य और रखरखाव के काम में लगे भारतीयों को बाहर निकालने के लिए कहा गया है। वहीं फिलहाल अफगानिस्तान में अब भारत के सिर्फ दो संस्थान रह गए हैं, जिनमें काबुल का दूतावास और मजार ए शरीफ का वाणिज्य दूतावास शामिल है। वहीं कंधार वाणिज्य दूतावास से हाल ही में भारतीय नगारिकों और सुरक्षाकर्मियों को वापस बुलाया गया है।
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