प्राचीन भारत में मंदिर वास्तुकला का बहुत ही समृद्ध इतिहास रहा है । भारत में ऐसे ऐसे प्राचीन मंदिर अभी भी उपस्थित हैं जिनके वास्तुकला के बारे में हम केवल अंदाजा ही लगा सकते हैं। अतुल्य भारत के इस सीरीज में आज हम बात करेंगे एक ऐसे ही अद्भुत वास्तु कला के उदाहरण के बारे में जिसके विषय में यह कहा जाता है कि इसकी दीवारों का निर्माण स्वयं भगवान शंकर के हाथों हुआ है!
दक्षिण भारत की तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली में स्थापित शिव मंदिर अंबिकेश्वर महादेव के बारे में कहानी मिलती है कि इस मंदिर की दिवारी बनाने के लिए भोलेनाथ स्वयं ही आते थे मंदिर को लेकर यह भी कथा मिलती है कि एक बार माता पार्वती ने जो ज्ञान की प्राप्ति के लिए पृथ्वी पर आकर इसी स्थान पर अपने हाथों से शिवलिंग बनाकर तपस्या की थी। तकरीबन 18 वर्ष पूर्व हिंदू चोल राजवंश के राजा कोकेंगानन ने यहां विशाल शिव मंदिर का निर्माण कराया।
तमिलनाडु के प्रसिद्ध पांच प्रसिद्ध शिव मंदिरों जो कि पांच महा तत्वों का प्रतिनिधित्व करते हैं में से एक यह मंदिर जंबूकेश्वर जलतत्व का प्रतिनिधित्व करता है। जंबूकेश्वर में भूमिका जलधारा है इसकी वजह से यहां पानी की कभी कमी नहीं पड़ती।
जंबूकेश्वर की वास्तुकला भी कमाल की है इस मंदिर के अंदर 5 प्रांगण हैं मंदिर के पांचवें परिसर की सुरक्षा के लिए विशाल दीवारों का निर्माण किया गया है जिसे विबुदि प्रकाश के नाम से जाना जाता है जोकि बाहर एक मील से अधिक दूरी तक फैली हुई है, यह 2 फीट चौड़ा और 25 फीट ऊंचा दीवाल है। मंदिर की आंतरिक जगह में 769से अधिक जटिल नक्काशीदार खंभे हैं। इसके अलावा यहां जलकुंड भी है। तीसरे परिसर में दो बड़े गोपुरम मौजूद हैं जो कि 73 और 100 फीट लंबे हैं मंदिर का गर्भ गिरी चौकोर आकार का है।
आइए देखते हैं जंबूकेश्वर मंदिर की कुछ झलकियां
यह शानदार वास्तुकला अट्ठारह सौ साल पहले सबसे कठिन चट्टान यानी कि ग्रेनाइट को काटकर बनाई गई थी
जंबूकेश्वर मंदिर तमिलनाडु की यह पत्थर कहां से भी ज्यादा शक्त है आज की आधुनिक युग में मशीनों से भी इतनी सटीकता से काम करना मुश्किल है
इसे वास्तुकला ना कह कर भक्ति कलाकार जाना ही कहां जाना चाहिए
प्राचीन भारत के इस स्थापत्य एवं वास्तुकला के जीवंत उदाहरण का दर्शन अवश्य करना चाहिए। अतुल्य भारत के इस सीरीज में आगे मिलेंगे कुछ अन्य रोचक जानकारी के साथ।
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