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Sankashti Chaturthi 2021: संकष्टी चतुर्थी के दिन कैसे करें पूजन पढ़ें विधि मुहूर्त एवं कथा



माघ के महीने में पड़ने वाली कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को शास्त्रों में विशेष महत्व दिया गया है. इसे सबसे बड़ी चतुर्थी माना जाता है और सकट चौथ, तिलकुट चौथ, माही चौथ और वक्रतुंडी चौथ जैसे नामों से जाना जाता है. मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने से संतान की आयु लंबी होती है. घर के तमाम संकट टलते हैं. जो महिलाएं मासिक चतुर्थी का व्रत नहीं रखतीं, वे भी इस सकट चौथ का व्रत जरूर रखती हैं. इस बार सकट चौथ 31 जनवरी को है. जानिए व्रत विधि कथा और चन्द्रोदय का समय.



ये है व्रत विधि

गणेश चतुर्थी की पूजन विधि :-


* श्री चतुर्थी के दिन सुबह जल्दी उठकर प्रतिदिन के कर्मों से निवृ होकर स्नान करें।

* फिर एक पटिए पर लाल कपड़ा बिछाकर गणपति की स्‍थापना के बाद इस तरह पूजन करें-

* सबसे पहले घी का दीपक जलाएं। इसके बाद पूजा का संकल्‍प लें।

* फिर गणेश जी का ध्‍यान करने के बाद उनका आह्वान करें।


*इसके बाद गणेश को स्‍नान कराएं। सबसे पहले जल से, फिर पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद और चीनी का मिश्रण) और पुन: शुद्ध जल से स्‍नान कराएं।


* गणेश के मंत्र व चालीसा और स्तोत्र आदि का वाचन करें।


* अब गणेश जी को वस्‍त्र चढ़ाएं। अगर वस्‍त्र नहीं हैं तो आप उन्‍हें एक नाड़ा भी अर्पित कर सकते हैं।


* इसके बाद गणपति की प्रतिमा पर सिंदूर, चंदन, फूल और फूलों की माला अर्पित करें।


* अब बप्‍पा को मनमोहक सुगंध वाली धूप दिखाएं।


* अब एक दूसरा दीपक जलाकर गणपति की प्रतिमा को दिखाकर हाथ धो लें।

* हाथ पोंछने के लिए नए कपड़े का इस्‍तेमाल करें।


* अब नैवेद्य चढ़ाएं। नैवेद्य में मोदक, मिठाई, गुड़ और फल शामिल करें।


* इसके बाद गणपति को नारियल और दक्षिण प्रदान करें।


* सकंष्टी/ सकट चतुर्थी की कथा श्रवण करें अथवा पढ़ें।


* अब अपने परिवार के साथ गणपति की आरती करें। गणेश जी की आरती कपूर के साथ घी में डूबी हुई एक या तीन या इससे अधिक बत्तियां बनाकर की जाती है।

* इसके बाद हाथों में फूल लेकर गणपति के चरणों में पुष्‍पांजलि अर्पित करें।

* अब गणपति की परिक्रमा करें। ध्‍यान रहे कि गणपति की परिक्रमा एक बार ही की जाती है।


* इसके बाद गणपति से किसी भी तरह की भूल-चूक के लिए माफी मांगें।


* पूजा के अंत में साष्टांग प्रणाम करें।


ये है शुभ मुहूर्त


चन्द्रोदय का समय : 31 जनवरी रविवार रात 08 बजकर 40 मिनट पर


चतुर्थी तिथि प्रारंभ : 31 जनवरी, रविवार रात 08 बजकर 24 मिनट


चतुर्थी तिथि समाप्त : 1 फरवरी, सोमवार शाम 06 बजकर 24 मिनट


ये है व्रत कथा


किसी नगर में एक कुम्हार रहता था. एक बार जब उसने बर्तन बनाकर आंवां लगाया तो आंवा नहीं पका. परेशान होकर वो राजा के पास गया और बोला कि महाराज न जाने क्या कारण है कि आंवा पक ही नहीं रहा है. राजा ने राजपंडित को बुलाकर कारण पूछा. राजपंडित ने कहा, हर बार आंवा लगाते समय एक बच्चे की बलि देने से आंवा पक जाएगा. राजपंडित की बात सुनकर राजा ने बलि का आदेश दे दिया. एक एक करके नगर के अलग अलग परिवार से एक बच्चा बलि के लिए भेजा जाता. इस तरह कुछ दिनों बाद एक बुजुर्ग महिला के लड़के की बारी आई. बुजुर्ग महिला के एक ही बेटा था और वही उसके जीवन का सहारा था. वो बेटे को खोना नहीं चाहती थी. ऐसे में उसे एक उपाय सूझा. उसने लड़के को सकट की सुपारी और दूब का बीड़ा देकर कहा, भगवान का नाम लेकर आंवा में बैठ जाना. सकट माता तेरी रक्षा करेंगी.

सकट के दिन बालक आंवा में बिठा दिया गया और वो महिलए सकट माता के सामने बैठकर पूजा प्रार्थना करने लगी. पहले तो आंवा पकने में कई दिन लग जाते थे, पर इस बार सकट माता की कृपा से एक ही रात में आंवा पक गया. सुबह जब कुम्हार ने देखा तो हैरान रह गया. आंवा पक गया था और उस बुजुर्ग महिला का बेटा जीवित व सुरक्षित था. सकट माता की कृपा से नगर के अन्य बालक भी जी उठे. यह देख नगरवासियों ने माता सकट की महिमा स्वीकार कर ली. तब से आज तक सकट माता की पूजा और व्रत का विधान चला आ रहा है.

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