धर्मनगरी वाराणसी के 84 घाटों पर वैसे तो हजारों मंदिर (#Temple) हैं, जिनकी खूबसूरती दुनिया में अपनी पहचान बनाती हैं. इन्हीं में से कुछ ऐसे मंदिर हैं जो विश्व प्रसिद्ध है. इन्हीं मंदिरों में से एक है रत्नेश्वर महादेव मंदिर (#Ratneshwar_Mahadev_Temple). इसकी खूबसूरती कुछ ऐसी है कि खुद पीएम नरेंद्र मोदी (#PM #Narendra #Modi) भी इसे लेकर ट्वीट करने से खुद को नहीं रोक पाए. 84 घाटों पर यह मंदिर बाकी सभी मंदिरों से पूरी तरह से अलग है. इसकी खासियत यह है कि लगभग 400 सालों से 9 डिग्री के एंगल पर झुका हुआ यह मंदिर आज तक ज्यों का त्यों खड़ा है, जबकि यह मंदिर गंगा नदी के तलहटी पर बना हुआ है.
आपने पीसा की मीनार के बारे में तो सुना ही होगा जो 4 डिग्री झुके होने के बावजूद ज्यों का त्यों खड़ा है, लेकिन धर्म नगरी वाराणसी में एक ऐसा मंदिर है जो 9 डिग्री झुके होने के बावजूद अपनी खूबसूरती से विश्व में प्रसिद्ध है. यह मंदिर स्थित है वाराणसी के मणिकर्णिका घाट के ठीक बगल में और इस मंदिर में भगवान शिव विराजमान हैं. इन्हें रत्नेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है.
रानी अहिल्याबाई की दासी ने बनवाया था यह मंदिर
रत्नेश्वर महादेव घाट के बिल्कुल किनारे गंगा नदी के तलहटी पर बना हुआ है. लगभग 400 वर्ष पहले इसे महारानी अहिल्याबाई की दासी रत्नाबाई ने बनवाया था. कहा जाता है कि यह मंदिर बनने के ठीक बाद ही यह नदी के दाहिने और झुक गया था. बताया जाता है कि रानी अहिल्याबाई की दासी रत्नाबाई ने मंदिर बनाने की इच्छा जताई थी. रानी अहिल्याबाई ने गंगा किनारे की यह जमीन रत्नाबाई को दे दी थी, जिसके बाद रत्नाबाई ने इस मंदिर को बनवाना शुरू किया. मंदिर निर्माण के दौरान कुछ रुपयों की कमी आई तो रत्नाबाई ने रानी अहिल्याबाई से रुपए लेकर के इस मंदिर का निर्माण पूर्ण कराया. मंदिर बनने के बाद जब रानी अहिल्याबाई ने मंदिर देखने की इच्छा जताई और मंदिर के पास पहुंचीं तो इसकी खूबसूरती देखकर उन्होंने दासी रत्नाबाई से इस मंदिर को नाम न देने की बात कही. बावजूद रत्नाबाई ने इसे अपने नाम से जोड़ते हुए रत्नेश्वर महादेव का नाम दिया. माना जाता है कि जैसे मंदिर का यह नाम पड़ा यह दाहिनी ओर झुक गया.मंदिर से जुड़ी हैं कई किवदंतियां
इस मंदिर से जुड़ी कई किवदंतियां भी हैं जो कि सर्व व्याप्त हैं. अलग-अलग लोग इस मंदिर के बारे में अलग-अलग बातें करते हैं. इन किवदंतियों में से एक यह है कि यह मंदिर अभिशापित है. लोग कहते हैं की मां कार्य पूरा न करने के कारण यह मंदिर एक तरफ झुक गया. हालांकि, ऐसी बातों का कोई भी प्रमाण नहीं मिलता. मंदिर की कलाकृति व कारीगरी देखते ही बनती है. गुजरात शैली पर बने इस मंदिर में अलग-अलग कलाकृति बनाई गई है. पिलर से लेकर दीवारें तक सभी पत्थरों पर नक्काशी का नायाब नमूना पेश कर रहे हैं. 330 से 400 साल पहले बिना किसी मशीन के सहारे ऐसी नक्काशी अपने आप में इस मंदिर के अनोखे होने की दास्तान बयां कर रही है.
पुरातत्व विभाग भी कर चुका है निरीक्षण
मंदिर के एक तरफ झुके होने के कारण इस मंदिर का पुरातत्व विभाग द्वारा निरीक्षण भी किया जा चुका है. भू-वैज्ञानिकों ने इसकी लंबाई व चौड़ाई भी नापी थी और मंदिर का झुकाव भी देखा जो कि 9 डिग्री पर झुका हुआ बताया गया. मंदिर की लंबाई 40 मीटर बताई गई है. इस मंदिर का एक तरफ झुका होना पीसा की मीनार से भी ज्यादा है. पीसा का मीनार 4 डिग्री एंगल में एक तरफ झुका हुआ है तो वहीं यह मंदिर 9 डिग्री एंगल में झुका हुआ है.
मंदिर देखने दूर-दराज से आते हैं लोग
इस मंदिर के अनोखी खूबसूरती को देखने के लिए दूरदराज से लोग आते हैं. चाहे देश के हो चाहे विदेश के हो जो भी इस घाट पर आता है वह इस मंदिर को देखता रह जाता है. विश्व के कोने-कोने से लोग इस मंदिर के बारे में जानते हैं और इसकी खूबसूरती देखने विशेषकर बनारस आते हैं. इस मंदिर में भगवान शिव के रूप में शिवलिंग स्थापित किया गया है जो कि जमीन के 10 फीट नीचे है. हालांकि, यह मंदिर साल में 8 महीने गंगाजल से आधा डूबा हुआ रहता है और 4 महीने पानी के बाहर. इसके कारण इस मंदिर के गर्भ गृह में कभी भी भगवान शिव के दर्शन नहीं हो पाता है. वह मिट्टी में दबे ही रहते हैं.
16 जनवरी को पीएम मोदी ने भी किया था ट्वीट
इस मंदिर की प्रसिद्धि का उदाहरण इसी से मिल सकता है कि 16 जनवरी को शाम ट्विटर पर एक ग्रुप द्वारा इस मंदिर का फोटो ट्वीट कर यह पूछा गया कि यह मंदिर कहां है तो उस पर काशी से सांसद व देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रिप्लाई करते हुए कहा यह मंदिर काशी में स्थित है और इसका नाम रत्नेश्वर महादेव है. मंदिर की कई कृतियां हैं, जिसे लेकर लोग अलग-अलग बातें करते हैं. कोई कहता है कि मंदिर गंगा नदी के तलहटी पर बने होने के कारण एक तरफ झुक गया है तो कोई कहता है कि मंदिर श्रापित है. लेकिन, इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं है कि मंदिर सदियों से 9 डिग्री के एंगल पर झुके होने के बावजूद आज तक उसी तरह खड़ा है जैसा कि 400 साल पहले था.
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