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उत्तराखंड के बंजर जमीन पर वन कर्मियों ने किया ऐसा करिश्मा, पर्यटकों के लिए बना फेवरेट स्पॉट





पर्यावरण (Environment) संरक्षण की दिशा में उत्तराखंड (Uttarakhand) के मुनस्यारी में खामोशी के साये में एक क्रांति ने जन्म लिया है. दरअसल, एक वक्त में पारिस्थितिकी तंत्र के लिहाज से भरपूर यह इलाका भूमि के कटाव व जरूरत से ज्यादा चराई के चलते मृत जानवरों (Animals) को दफनाने की जगह बन गया था. कुमाऊं हिल्स (Kumaon Hills) के इस इलाके की दुखद स्थिति को देखते हुए वन कर्मियों के एक समूह और वैज्ञानिकों ने इसके बारे में कुछ नया करने के बारे में सोचा और एक साल बाद बंजर जमीन का यह टुकड़ा ट्यूलिप के रंगों से सराबोर हो उठा. आइए जानते हैं कि कैसे हुआ यह संभव...


बॉलीवुड के फिल्मी नजारों सी नजर आती है उत्तराखंड की यह जगह


खूबसूरत रंगों से सराबोर ट्युलिप के फूलों की ये रंगीन चादर देखकर किसी को भी यह अहसास होगा कि यह किसी बॉलीवुड फिल्म का नजारा है. दरअसल, पंचाचूली पर्वत की बर्फीली चोटियों से घिरा ये है 'मुनस्यारी'. जी हां, उत्तराखंड के ऊपरी हिस्से में तीस एकड़ इलाके में फैला मुनस्यारी का यह इलाका इन दिनों पर्यटकों की पसंद बना हुआ है. एक वक्त मरे हुए जानवरों को दफनाए जाने और बंजर जमीन में तब्दील होने वाला यह इलाका आज के वक्त में हिमालयी क्षेत्र में खूबसूरत शीतकालीन फूलों से गुलजार है.


प्रशासन ने बंजर जमीन की कुछ ऐसे की कायापलट


पिथौरागढ़ जिले के वन अधिकारी विनय भार्गव की अगुवाई में स्थानीय लोगों के साथ मिलकर प्रशासन ने इस जगह की कायापलट करने की ठानी और इस मकसद में कामयाब भी हुए. इस संबंध में वन अधिकारी विनय भार्गव बताते हैं कि ऑफ सीजन में ब्लूम प्राप्त करने का सफल प्रयोग हमारे द्वारा किया गया है. इसकी सफलता से अब हम वर्ष में 6 माह से अधिक ट्युलिप का ब्लूम प्राप्त कर सकते हैं.


आगे जोड़ते हुए वे बताते हैं कि इसका उपयोग कर ट्युलिप प्रजातियों का किस प्रकार वैरायटी इंप्रूवमेंट किया जाए, लाइफ स्पैन (जीवनकाल) बढ़ाया जाए और इसको किस प्रकार व्यावसायिक स्तर पर प्रयोग किया जा सकता है, इसको विकसित करने का प्रयास हम लोग अब कर रहे हैं.


हालांकि, इस बंजर जमीन की कायापलट करने का सफर आसान नहीं रहा. जमीन की गुणवत्ता खत्म होने के साथ ही यहां जंगली घास ने टीम के सामने कई मुश्किलें पैदा की, लेकिन पर्यावरण संरक्षण के जज्बे ने हार नहीं मानी.


30 एकड़ का यह इलाका आज पर्यटकों की पसंदीदा जगह


एक लंबे सफर के बाद आखिरकार इस जमीन का रूप बदला. बंजर जमीन रंग-बिरंगे फूलों की महक से खिल उठी और ये इंसान के दृढ़ निश्चय और मेहनत का ही नतीजा है कि लोग आज इसे वेस्टलैंड नहीं बल्कि ट्युलिप गार्डन कहकर बुलाते हैं और यह आज मुनस्यारी की पहचान बन गया है. बताना चाहेंगे कि ट्युलिप कुमाऊं हिमालय की स्थानीय प्रजाति है, जो कि 5 से 6 हजार फीट पर कई क्षेत्रों में पाया जाता है.


यहां की वादियों में बिखरी रंग-बिरंगे ट्यूलिप फूलों की खूबसूरती


देश-विदेश के पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए यहां 9,000 फीट की ऊंचाई पर ट्युलिप गार्डन बनाया गया है. आज इको पार्क मुनस्यारी में आने वाला हर पर्यटक एकबार यहां जरूर आता है और विंहगम हिमालय दर्शन व प्रकृति का आनंद लेता है.


कड़ी मेहनत से स्थानीय प्रशासन ने लोगों के साथ मिलकर हासिल की कामयाबी


उत्तराखंड के ट्यूलिप गार्डन में बिछी फूलों की चादर और दूर-दूर तक इन फूलों की महक ने ये साबित कर दिया है कि अगर सही वक्त पर सही और जिम्मेदार लोग अगर एक साथ हाथ से हाथ मिला लें तो पर्यावरण को एक नया जीवन मिल सकता है और हमारी धरा फिर से महक सकती है.

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