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इन राज्यों में पहले से ही लागू है दो बच्चा नीति, जानें कौन हैं ये प्रदेश


देश में शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि, आवास, रोज़गार पर बढ़ते दबाव को देखते हुए दो बच्चों की नीति लागू करने की मांग की जा रही है. वहीं, जब बीजेपी शासित राज्य उत्तर प्रदेश असम में यह नीति लागू करने की बात चली तो विपक्ष से इसे चुनावी मुद्दा बताकर बवाल कर रहा है. तो सवाल उठता है कि आखिर जब कई राज्यों में पहले से दो बच्चा नीति लागू है, तो इन नेताओं ने बवाल नहीं किया. ना ही सरकार से सवाल पूछा. वहीं, बात जब उत्तर प्रदेश असम में लागू करने की बात चली तो सियासी घमासान छिड़ गया. तो चलिए आपको बताते हैं कि इन राज्यों में पहले से लागू है दो बच्चा नीति. इन राज्यों में दो बच्चा नीति लागू राजस्थान सरकारी नौकरियों के मामले में जिन उम्मीदवारों के दो से अधिक बच्चे होंगे वह नियुक्ति के पात्र नहीं होंगे. राजस्थान पंचायती राज अधिनियम, 1994 के अनुसार, यदि किसी शख्स के दो से अधिक बच्चे हैं तो उसे ग्राम पंचायत या वार्ड सदस्य के रूप में चुनाव लड़ने के लिये अयोग्य घोषित किया जाएगा. हालांकि पिछली सरकार ने विकलांग बच्चे के मामले में दो बच्चों संबंधी मानदंड में ढील दी थी. तेलंगाना आंध्र प्रदेश धारा 19 (3) के तहत तेलंगाना पंचायती राज अधिनियम, 1994 की धारा 153 (2) 184 (2) के तहत दो से अधिक बच्चों वाले शख्स को चुनाव लड़ने के लिये अयोग्य घोषित किया जाएगा. हालांकि 30 मई, 1994 से पहले अगर किसी शख्स के दो से अधिक बच्चे थे तो उसे अयोग्य घोषित नहीं किया जाएगा. आंध्र प्रदेश पंचायत राज्य अधिनियम, 1994 में समान खंड आंध्र प्रदेश के लिये भी लागू होता है, जहां दो से अधिक बच्चे वाले शख्स को चुनाव लड़ने के अयोग्य घोषित किया जाएगा. गुजरात साल 2005 में सरकार द्वारा गुजरात स्थानीय प्राधिकरण अधिनियम में संशोधन किया गया था. जिसके अनुसार, स्थानीय स्वशासन, पंचायतों, नगर पालिकाओं नगर निगम के निकायों का चुनाव लड़ने हेतु दो से अधिक बच्चों वाले किसी भी शख्स को अयोग्य घोषित किया गया है. मध्य प्रदेश यह राज्य साल 2001 के बाद से दो बच्चों के मानदंड संबंधी नीति का पालन कर रहा है. मध्य प्रदेश सिविल सेवा (सेवाओं की सामान्य स्थिति) नियमों के अनुसार, 26 जनवरी, 2001 को या उसके बाद यदि तीसरे बच्चे का जन्म होता है तो वह शख्स किसी भी सरकारी सेवा हेतु अयोग्य माना जाएगा. यह नियम उच्चतर न्यायिक सेवाओं पर भी लागू होता है. मध्य प्रदेश ने साल 2005 तक स्थानीय निकाय चुनावों के उम्मीदवारों के लिये दो-बच्चों के आदर्श का पालन किया परंतु व्यावहारिक रूप से आपत्तियां आने के बाद इसे बंद कर दिया गया. हालांकि विधानसभा संसदीय चुनावों में ऐसा नियम लागू नहीं था. महाराष्ट्र महाराष्ट्र जिला परिषद पंचायत समिति अधिनियम स्थानीय निगम चुनाव (ग्राम पंचायत से लेकर नगर निगम तक) लड़ने के लिये दो से अधिक बच्चों वाले शख्स को अयोग्य घोषित किया जाएगा. महाराष्ट्र सिविल सेवा (छोटे परिवार की घोषणा) निगम, 2005 के अनुसार, दो से अधिक बच्चों वाले शख्स को राज्य सरकार के किसी भी पद हेतु अयोग्य घोषित किया गया है. सार्वजनिक वितरण प्रणाली का लाभ दो से अधिक बच्चों वाली महिलाओं को नहीं दिया जाता. कर्नाटक कर्नाटक (ग्राम स्वराज पंचायत राज) अधिनियम, 1993 दो से अधिक बच्चों वाले शख्सयों को ग्राम पंचायत जैसे- स्थानीय निकायों के चुनाव लड़ने से प्रतिबंधित नहीं कर सकता. हालांकि कानून के अनुसार, एक शख्स जिसके परिवार के सदस्यों के उपयोग के लिये सैनिटरी शौचालय उपलब्ध नहीं है, वह चुनाव लड़ने हेतु अयोग्य होगा. ओडिशा ओडिशा जिला परिषद अधिनियम दो से अधिक बच्चों वाले शख्स को चुनाव लड़ने से प्रतिबंधित करता है. उत्तराखंड राज्य सरकार ने दो से अधिक बच्चों वाले लोगों को पंचायत चुनाव लड़ने से रोकने का फैसला लिया गया था. इस संबंध में विधानसभा में एक विधेयक पारित किया गया था. परंतु ग्राम प्रधान ग्राम पंचायत वार्ड सदस्य का चुनाव लड़ने वालों द्वारा इस फैसले को हाईकोर्ट में दी गई चुनौती के बाद उन्हें राहत प्रदान की गई. इसके तहत दो बच्चों वाले मानदंड की शर्त केवल उन लोगों पर लागू की गई है जिन्होंने जिला पंचायत के चुनाव लड़े.

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