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भारत में कोरोना: संवेदनहीनता, अकर्मण्यता, लाचारी, अवसरवादिता



@श्रीमेन्द्र साहनी

मृत्यु एक कटु सत्य है , सन्यासी स्वीकार करें तो ज्ञान, सरकार स्वीकार करें तो असफलता, नागरिक स्वीकार करें तो मजबूरी।

संसार में वुहान वायरस ने जो तबाही मचाई है यह विभिन्न देशों पर अलग-अलग स्तर पर दिखाई देती है। जो एक बात सभी देशों में सामान्य है वह यह है कि सभी देशों ने वुहान वायरस के सामने अपने घुटने टेके हैं। समृद्धि स्वास्थ्य तंत्र से सुसज्जित अमेरिका हो अथवा पश्चिमी देश, तानाशाही चीन हो अथवा लचर स्वास्थ्य तंत्र वाला देश भारत हो। भारत के परिप्रेक्ष्य में यदि देखा जाए तो यह इतनी भयावह स्थिति हमारा समाज तथा हमारी सरकारों ने मिलकर किया है। यह एक सेल्फगोल करने जैसा है। पूरे विश्व में जब सेकंड वेब अधिक आक्रामकता से प्रहार कर रही थी तो हमारे देश के नीति नियंता प्रथम लहर पर छद्म विजय का उल्लास मना रहे थे। सरकार तथा विपक्ष जनता को उनके हाल पर छोड़ कर ताबड़तोड़ रैलियां एवं चुनाव प्रचार में व्यस्त थे जैसे उनके लिए एक राज्य को जितना लाखों लोगों के जीवन से अधिक महत्वपूर्ण हो। यह सरकार की अकर्मण्यता एवं अदूरदर्शिता है जो इतने बड़े आपदा को देख नहीं सके जबकि इसके उदाहरण हमारे सामने जीवंत थे ।


जितना सरकार जिम्मेदार है इस आपदा के लिए उतना ही जिम्मेदार हमारे देश का विपक्ष है। जो सरकार को कटघरे में खड़े करने या उससे राह दिखाने के बजाय बेवजह एवं बेबुनियाद मुद्दों को उठाने का प्रयास करते रहे।


विभिन्न स्तर पर कर्मचारी कार्यरत हैं सफाई कर्मचारी से लेकर नीति नियंता तक सभी स्तर पर कर्मचारी एवं नीति नियंता अपना अपना कार्य नौकरी समझकर करते हैं उन्हें कर्तव्य बोध नहीं है सरकारी अस्पतालों संस्थानों से लेकर प्राइवेट संस्थान सभी संवेदनहीनता के साथ सिर्फ और सिर्फ पैसों के लिए कार्य कर रहे हैं। सरकारी अस्पताल में पहुंचते ही मरीज एवं उसके घर वालों को बोल दिया जा रहा है कि यहां बेड खाली नहीं है कहीं और जाओ कहां जाना है किसी को नहीं पता। निर्दयता के साथ कही गई इस बात के बाद एक लाइन दुख अथवा संवेदना के नहीं बोले जा रहे हैं सरकारी संस्थान मरीजों को लौटा नहीं रहे बल्कि भगा रहे हैं। कुछ लोग अपने कार्य को संवेदना के साथ कर तो रहे हैं परंतु ऐसे लोगों की संख्या बहुत कम है। प्राइवेट अस्पतालों में हार जो लोग पहुंच रहे हैं उनसे तो पहले कह दिया जा रहा है कि बेड नहीं है चले जाइए फिर परिजनों को रोने- गिड़गिड़ाने के बाद 500000 अग्रिम धनराशि की मांग की जा रही है। दवाइयों तथा स्वास्थ्य सुविधाओं वाली वस्तुओं का कीमत आसमान छू रहा है। आपदा में जनमानस को अपूरणीय क्षति हो रही है वहीं कई लोग आपदा में अवसर ढूंढ लिए हैं।


समस्या चाहे जैसी भी हो उसकी मार सबसे ज्यादा हमारे समाज में सबसे गरीब एवं कमजोर नागरिक पर सबसे ज्यादा पड़ती है। जिन लोगों के घर एक भी। जिन लोगों के घर एक भी मरीज है वह लाखों रुपए कर्ज लेकर दवा करवा रहे हैं बिना यह सोचे कि उस कर्ज को कैसे लौटाना है क्योंकि जीवन महत्वपूर्ण है। जिन घरों के कमाने वाले व्यक्ति इस महामारी की चपेट में आ जा रहे हैं उनके लिए दोहरी मार साबित हो रही है । इस आपदा में सामान्य जनमानस को चूसा जा रहा है व्यापारी वर्ग पैसा चूस रहा है नेता वर्ग वोट चूस रहे हैं और कर्मचारी वर्ग सम्मान चूस रहे हैं। कोई भी वर्ग यह सोचने एवं समझने के लिए तैयार नहीं है कि यह महामारी जब उनके घर की दहलीज पर जानलेवा कदम रख देगी तो वे क्या करेंगे ? आपके पास पैसा है, हनक है तो प्रयोग कर लेंगे परंतु इस बात की क्या गारंटी है कि आप बच जाएंगे। जिन लोगों के पास पैसा है अथवा पावर है वह लोग अस्पतालों में जगह आसानी से पा जा रहे हैं तथा सामान्य जनमानस अपने को ठगा महसूस कर रहा है। इस महामारी से बचने के लिए सभी को अपना कर्तव्यबोध होना अति आवश्यक है अन्यथा इसके और भयानक परिणाम हमारे सामने आएंगे। यदि प्रशासन व्यापारी कर्मचारी एवं नागरिक कंधे से कंधा मिलाकर खड़े हो जाए तो इस महामारी को रोकने में हम शीघ्र सफल होंगे।




डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए Bharat 24 उत्तरदायी नहीं है। अपने विचार हमें thebharat24@gmail.com पर भेज सकते हैं। लेख के साथ संक्षिप्त परिचय और फोटो भी संलग्न करें।
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